छाछ भूख बढाती है और पाचन शक्ति ठीक करती है, यह शरीर और हृदय को बल देने वाली तथा तृप्तिकर है, कफ़रोग, वायुविकृति एवं अग्निमांध में इसका सेवन हितकर है।तभी तो भारतीय जनमानस में प्रचलित यह कहावत परम सत्य है कि—
🌺”जो पिए लस्सी वो जिए अस्सी”🌺
वातजन्य विकारों में छाछ में पीपर (पिप्ली चूर्ण) व सेंधा नमक मिलाकर,
कफ़ विक्रति में आजवायन, सौंठ, काली मिर्च, पीपर व सेंधा नमक मिलाकर तथा
पित्तज विकारों में जीरा व मिश्री मिलाकर छाछ का सेवन करना लाभदायी है।
एवं संग्रहणी व अर्श में सोंठ, काली मिर्च और पीपर को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें अब 1 ग्राम चूर्ण को 200 मि.लि. छाछ के साथ नियमित रूप से लें।
छाछ, लस्सी या मट्ठा के लिए भारतीय जनमानस में यह कहावत भी बहुत मशहूर हैं—
🌺जो भोरहि मट्ठा पियत,
जीरा नमक मिलाय.!
बल बुद्धि तीसे बढत,
सबै रोग जरि जाय.!🌺
तो जानिए छाछ के स्वास्थ्य वर्धक लाभ—
1-छाछ बनाने की विधि-
दही में से मलाई निकालकर पांच गुना पानी मिलाकर अच्छी तरह मथने के बाद जो द्रव्य बनता है उसे छाछ कहते है।
छाछ में सैंधा या काला नमक मिलाकर सेवन करने से वात एवं पित्त दोनों दोष ठीक होते हैं।छाछ वायु नाशक है और पेट की अग्नि को प्रदिप्त करता है।
छाछ अपने गरम गुणों, कसैली, मधुर और पचने में हलकी होने के कारण कफ़नाशक और वातनाशक होती है,
पचने के बाद इसका विपाक मधुर होने से पित्तक्रोप नही करती।
ताजा मट्ठा, तक्र और छाछ दिल की धडकन वाले रोगियों के लिए अमृत है, छाछ का स्वभाव शीतल होता है।
इन तीनों को बनाने की विधि भी अलग-अलग हैं। तो जानिए मठ्ठा व तक्र बनाने की विधि—
2-मट्ठा बनाने की विधि-
दही में बिना पानी मिलाए अच्छी तरह से मथ कर थोडा मक्खन निकालने के बाद जो अंश बचता है उसे मट्ठा कहते है, ये वात एवं पित्त दोनो का परम शत्रु है।
3-तक्र बनाने की विधि-
दही में एक चौथाई पानी मिलाकर अच्छी तरह से मथ कर मकखन निकालने के बाद जो बचता है उसे तक्र कहते है, तक्र शरीर में जमें मैल को बाहर निकालकर वीर्य बनाने का काम करता है, ये कफ़ नाशक है।
भोजनान्ते पिबेत तक्रं वैद्यस्य किं प्रयोजनम !!
अर्थात
भोजन के उपरान्त तक्र पीने पर वैद्य की क्या आवश्यकता है ?
खाना न पचने की शिकायत-
जिन लोगों को खाना ठीक से न पचने की शिकायत होती है।उन्हें रोजाना छाछ में भुने जीरे का चूर्ण, काली मिर्च का चूर्ण और सेंधा नमक का चूर्ण समान मात्रा में मिलाकर धीरे-धीरे पीना चाहिए। पाचक अग्रि तेज हो जाएगी।
दस्त-
गर्मी के कारण अगर दस्त हो रही हो तो बरगद की जटा को पीसकर और छानकर छाछ में मिलाकर पीएं।
एसीडिटी-
छाछ में मिश्री, काली मिर्च और सेंधा नमक मिलाकर रोजाना पीने से एसीडिटी जड़ से साफ हो जाती है।
कब्ज-
कब्ज की शिकायत होने पर अजवाइन मिलाकर छांछ पीएं।
पेट की सफाई के लिए गर्मियों में पुदीना मिलाकर लस्सी बनाकर पीएं।
छाछ के उपयोग में सावधानियां
1-मट्ठे को रखने के लिए पीतल, तांबे व कांसे के बर्तन का प्रयोग न करें।
2-इन धातु से बनने बर्तनों में रखने से मट्ठा जहर समान हो जाएगा। सदैव कांच या मिट्टी के बर्तन का प्रयोग करें। अच्छी क्वालिटी के प्लास्टिक व स्टील से बने बर्तन भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
3-दही को जमाने में मिट्टी से बने बर्तन का प्रयोग उत्तम रहता है।
4-वर्षा काल में दही या मट्ठे का प्रयोग न करें।
5- भोजन के बाद दही सेवन बिल्कुल न करें बल्कि मट्ठे का सेवन ज़रूर करें।
6-तेज बुखार या बदन दर्द, जुकाम या जोड़ों के दर्द में मट्ठा नहीं लेना चाहिए।
7-क्षय रोगी को मट्ठा नहीं लेना चाहिए।
8-यदि कोई व्यक्ति बाहर से ज्यादा थक कर आया हो तो तुरंत दही या मट्ठा न लें।
9-दही या मट्ठा कभी बासी नहीं खाना चाहिए क्योंकि इसकी खटास आंतो को नुकसान पहुंचाती है। इसके कारण से खांसी आने लगती है।
10-मूर्छा, भ्रम, दाह, रक्तपित्त व उर:क्षत (छाती का घाव या पीडा) विकारों मे छाछ का प्रयोग नही करना चाहिये।
गर्मियों में छाछ में जीरा, आजवायन और मिश्री अवश्य डाल कर पिये वर्ना छाछ नुकसान कर सकती है।
तो यह सत्य ही है कि—
🌺”अस्सी तुस्सी ते लस्सी”🌺
उपरोक्त लेख केवल शैक्षिक उद्देश्यों के लिए हैं यहाँ पर दी गयी जानकारी का उपयोग किसी भी स्वास्थ्य संबंधी समस्या या बीमारी के निदान या उपचार हेतु बिना विशेषज्ञ की सलाह के न करें। चिकित्सा , परीक्षण और उपचार के लिए हमेशा चिकित्सक की सलाह ले। यदि आपको यह लेख पसंद आया हो तो कृपया इसे अपने परिचितों में शेयर अवश्य करे।
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